महाराणा की कहानी

 महाराणा प्रताप जयंती पर एक रचना...


विषय:- महाराणा की कहानी

(आधार छंद:- भुजंगप्रयात छंद)


हमें  याद  आयी  कहानी   पुरानी।

सुनी हमने थी ये किसी की जुबानी।

थे चित्तौड़गढ़ के महाराज राणा।

वतन पर मिटे बन गये इक निशानी।


कभी सर झुकाया न थी हार मानी

बिताई   उन्होंने  वनों    में   जवानी।

नहीं आ सकी आंच उनके वतन पर।

रहे  खाके रोटी  पिया  सिर्फ  पानी।


लिये हाथ भाला न था कोइ सानी।

लहू  बैरियों  का  बहाने  की'  ठानी।

कभी छूट जिंदा न दुश्मन था पाया।

विजेता बना रच गया इक  कहानी।


पवन  सा उड़े  अश्व उनका  ज़हाँ  में।

इशारा समझ बदले  अपनी रवानी।

दिखा दृढ़ता अपनी लड़े दुश्मनों से।

निराशा मिली औ पड़ी मुँह की' खानी।


प्रतापी प्रतिज्ञा उन्हें थी निभानी।

वतन पर मिटे बन गये  वो निशानी।

जिये थे वतन पर मरे भी वतन पर।

बने   देश  गौरव  नहीं  कोई' सानी।




कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव, 13 जून 2021

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