पर्यटन: 1857 की क्रांति की शुरुआत मेरठ से हुई: आरपी सिंह चौहान


समीक्षा न्यूज 

ऊर्जा भवन मेरठ आने पर मेरठ कैंट में अपने पूर्व डिपार्टमेंट मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस (एमईएस) के साथी इंजीनियर्स से मुलाकात कर बहुत अच्छा लगा।

165 साल पहले 1857 की क्रांति की शुरुआत वर्तमान उत्तर प्रदेश के मेरठ से हुई थी। यहीं से अंग्रेज सरकार के खिलाफ पहली बार 10 मई 1857 को स्वतंत्रता का बिगुल फूंका गया था। 1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, गुर्जर विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। 1857 की क्रान्ति की शुरूआत 10 मई 1857 की संध्या को मेरठ में हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ” क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है,  मेरठ से निकली इसी चिंगारी की आग दादरी होते हुए बुलंदशहर तक पहुँची और अंग्रेजी शासन के खिलाफ विकराल रूप धारण करती गई।

भारत के हिन्‍दु, मुस्लिक, सिक्‍ख और अन्‍य सभी वीर पुत्र कंधे से कंधा मिलाकर लड़े और ब्रिटिश राज को उखाड़ने का संकल्‍प लिया। 

अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव उत्तर प्रदेश के मेरठ में सन् 1857 में हुई थी। 09 मई 1857 की सुबह परेड ग्राउंड पर तीसरी अश्वसेना के 85 सिपाहियों ने चर्बी लगे कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया था। तीनों रेजीमेंट के सिपाही और हजारों सैनिकों के सामने उन सिपाहियों का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। उन सिपाहियों को अपमानित करके विक्टोरिया पार्क स्थित नई जेल में भेजा गया था। 10 मई 1857 की क्रांति के दौरान सदर बाजार की वेश्याएं 85 सैनिकों की गिरफ्तारी के बाद उठ खड़ी हुई थीं। वेश्याओं ने सिपाहियों से कहा था कि लाओ अपने हथियार हमें दो। हम ही उन सिपाहियों को जेल से आजाद करा देंगे, तुम चूड़ियां पहनकर बैठो। विक्टोरिया पार्क उस घटना की याद दिलाता है, जहां 10 मई 1857 को तीसरी अश्वसेना के सवारों ने अपने 85 सैनिकों को छुड़ाकर आजादी की पहली लड़ाई का बिगुल बजाया था।

10 मई 1857 की क्रांति का गवाह औघड़नाथ मंदिर है। भारतीय सैनिकों ने चर्बी लगे कारतूस को मुंह से लगा लिया तो मंदिर के पुजारियों ने सैनिकों को पानी भी नहीं पिलाया था। यही वह पल था, जिसने सैनिकों को धार्मिक रूप से झकझोर दिया। उन्होंने अंग्रेजी राज के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया। देश की आजादी की लड़ाई में हजारों ऐसे गुमनाम लोगों ने भी हिस्सा लिया, जिन्हें कोई नहीं जानता। इन क्रांतिकारियों ने 1857 में न सिर्फ अंग्रेजी सरकार के होश उड़ा दिए बल्कि एक ऐसी चिंगारी को हवा दे दी, जिसे अंग्रेज लाख कोशिश के बावजूद बुझा न पाए। जिसके बाद पूरा देश #पूरब से लेकर #पश्चिम और #उत्तर से लेकर #दक्षिण तक #आजादी के #आंदोलन में अपनी कूद पड़ा। इस क्रांति को ब्रिटिश राज द्वारा एक वर्ष के अंदर नियंत्रित कर लिया गया, जो 10 मई 1857 को मेरठ में शुरू हुई और 20 जून 1858 को ग्‍वालियर में समाप्‍त हुई।

दिल्ली रोड स्थित शहीद स्मारक परिसर में ही राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय है। संग्रहालय का लोकार्पण 10 मई 2007 को हुआ था। संग्रहालय में क्रांति की वीथिकाएं मेरठ में उठी ज्वाला और वीर सेनानियों के बलिदान की कहानी बयां करती है। इसमें अंग्रेजों पर गोलियां बरसाते सैनिक भी दिखते हैं। जेल तोड़कर सैनिकों को मुक्त करने की तस्वीर भी नजर आती है। चर्बी लगे कारतूस के खिलाफ जिस फकीर ने सैनिकों को जानकारी दी थी, उन्हें भी रेखाचित्र के माध्यम से दर्शाया गया है। वहीं दूसरी तरफ अशोक की लाट वाले स्मारक के शिलापट पर 85 सिपाहियों के नाम भी अंकित हैं। इन्होंने सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की थी।








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