संपूर्ण सृष्‍टि की कल्‍याण कामना है भारतीय साहित्‍य की चेतना में: पूर्व न्यायमूर्ति शंभूनाथ श्रीवास्‍तव


इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति व छत्तीसगढ़ के लोकायुक्त श्री शंभूनाथ श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय साहित्‍य की चेतना में संपूर्ण सृष्‍टि की कल्‍याण कामना है।
न्‍यायमूर्ति श्री श्रीवास्‍तव ने इन्‍द्रप्रस्‍थ साहित्‍य भारती के प्रदेश अधिवेशन को मुख्‍य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उक्‍त विचार व्‍यक्‍त किए। गांधी स्‍मृति एवं दर्शन समिति के सहयोग से राजघाट, नई दिल्‍ली में रविवार को आयोजित इस अधिवेशन का मुख्‍य विषय था-हमारी साहित्‍य परंपरा।
उन्‍होंने आगे कहा कि समाज को प्रेरणा देने की शक्ति साहित्य में है। हमारे संतों ने अपनी रचनाओं के माध्‍यम से राष्‍ट्र को जोड़ने का काम किया।
समारोह की अध्‍यक्षता करते हुए इंद्रप्रस्‍थ साहित्‍य भारती एवं दिल्‍ली लाइब्रेरी बोर्ड के अध्‍यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ ने कहा कि हमारा प्राचीन साहित्‍य महान् है। उससे प्रेरित होकर हमें ऐसा साहित्‍य रचना है जो उदात्त भावनाओं से पुष्‍ट हो और जिससे संवेदनाएं जागृत हो सकें।
विशिष्‍ट अतिथि के नाते केंद्रीय हिंदी संस्‍थान के निदेशक डॉ. नंदकिशोर पांडेय ने कहा कि साहित्‍य जीवन को सुखमय बनाता है। भारतीय साहित्‍य परंपरा मनुष्‍य ही नहीं, अपितु जीव-जंतु की रक्षा के साथ खड़ा होता है। यह परंपरा तेज, स्‍वाभिमान और रक्षण की परंपरा है। उन्‍होंने कहा कि मनुष्‍य जीवन की संपूर्णता जिससे परिचालित होती है वह भारतीय साहित्‍य का आधार है। साहित्‍य जीवन में रस का संचार करता है। यह जीवन में उल्‍लास बढ़ाता है। करूणा, त्‍याग, संयम, अपरिग्रह के लिए प्रेरित करता है। उन्‍होंने कहा कि टुकड़े-टुकड़े में तमाम प्रकार के विखंडन को देखते रहना, यह हमारी साहित्‍यिक परंपरा नहीं है। विभिन्‍नताओं के बीच समन्‍वय के सूत्र में पिरोना, यह भारतीय साहित्‍य की परंपरा है।
मुख्‍य वक्‍ता के रूप में अखिल भारतीय साहित्‍य परिषद् के राष्‍ट्रीय महामंत्री श्री ऋषि कुमार मिश्र ने परिषद् के उद्देश्‍य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारे सारे कार्यक्रम भारतीयता से समन्‍वित रहते हैं। उन्‍होंने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि समाज के हर क्षेत्र में फैले हुए प्रदूषण से साहित्‍य भी प्रभावित हुआ है। रामायण-महाभारत में राम-कृष्‍ण जैसे चरित्र-चित्रण हुए, बाद में महाराणा प्रताप-शिवाजी जैसे। इन सब चरित्रों ने आम जन को प्रेरित किया। श्री मिश्र ने कहा कि भारतीय इतिहास के तेजस्वी नायकों का चरित्र-चित्रण किया जाना चाहिए, जिससे लोग प्रेरणा ले सकें।
हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. पूर्णमल गौड़ ने अकादमी द्वारा साहित्यकारों के सम्मान के लिए प्रारंभ किए गए पुरस्‍कारों के बारे में विस्‍तार से अवगत कराया। गांधी स्‍मृति एवं दर्शन समिति के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. वेदव्‍यास कुण्‍डू ने कहा कि हमारे सामने चुनौती है कि वैश्‍विक स्‍तर पर हम अपने साहित्‍य को कैसे प्रस्‍तुत करें। मंगल सृष्‍टि न्‍यास के सचिव श्री तिलक चांदना ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम होते रहना चाहिए जिससे साहित्‍यकारों का आपस में संवाद हो सके।
इस सत्र का संचालन इन्‍द्रप्रस्‍थ साहित्‍य भारती की संयुक्‍त महामंत्री डॉ. नीलम राठी ने और धन्‍यवाद ज्ञापन अधिवेशन के संयोजक श्री भुवनेश सिंघल ने किया।
द्वितीय सत्र का विषय था-हमारी साहित्‍य परंपरा। इस सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्‍ठ साहित्‍यकार श्री मुन्‍नालाल जैन ने कहा कि रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ हमें संस्‍कारित करते हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार भगत ने वामपंथी साहित्‍यकारों पर प्रहार करते हुए कहा कि वे यथार्थ के नाम पर नग्‍नता परोसते हैं, समाज के केवल विद्रूप चेहरे को प्रस्‍तुत करते हैं, इससे समाज में नकारात्‍मकता का प्रसार होता है। आज समाज के सकारात्‍मक पहलुओं को उजागर करने की आवश्‍यकता है। डॉ. भगत ने आध्‍यात्‍मिक चेतना से युक्‍त साहित्‍य लिखे जाने पर बल दिया। मुख्‍य वक्‍ता के नाते केंद्रीय हिंदी निदेशालय के पूर्व निदेशक डॉ. रविप्रकाश टेकचंदानी ने सिन्धी भाषा, साहित्य व संस्कृति की महत्ता को प्रस्‍तुत करते हुए कहा कि भारत को समझना है तो सिंध-सिंधी साहित्‍य के बिना नहीं समझ सकते। उन्‍होंने कहा कि हम टुकड़ों में विचार नहीं करते अपितु भारत को संपूर्णता में देखते हैं। सुप्रसिद्ध कवि श्री हेमंत शर्मा 'दिल' ने भी अपने विचार व्‍यक्‍त किए। इस सत्र का संचालन इन्‍द्रप्रस्‍थ साहित्‍य भारती के मंत्री श्री संजीव सिन्‍हा ने तथा धन्‍यवाद ज्ञापन इंद्रप्रस्‍थ साहित्‍य भारती के वरिष्‍ठ उपाध्‍यक्ष श्री जय सिंह आर्य ने किया।
तृतीय सत्र का विषय था- हमारी साहित्‍य परंपरा में गांधीजी का योगदान। इस सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. अवनिजेश अवस्‍थी ने कहा कि गांधीजी ने अपने आचरण और शब्‍दों में भारतीय विचार का आग्रह रखा। डॉ. अवस्‍थी ने कहा कि गांधी विचार का भारतीय साहित्‍य पर अच्‍छा प्रभाव पड़ा है। तीन बड़े रचनाकार प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं में यह विचार प्रखरता से प्रस्‍तुत हुआ है। इस दृष्‍टि से रंगभूमि, कामायनी, कामना कृति उल्‍लेखनीय है। वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. विनोद बब्‍बर ने कहा कि गांधीजी ने सबको, विशेष रूप से समाज के उपेक्षितों को जोड़ने का काम किया। गांधीजी भारतीय परंपरा के साथ रहे। मुख्‍य वक्‍ता के रूप में सेवा इंटरनेशनल के निदेशक डॉ. श्‍याम परांडे ने कहा कि गांधीजी भारतीय भाषाओं के प्रबल पक्षधर थे। इस सत्र की अध्‍यक्षता करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्‍थान के उपाध्‍यक्ष डॉ. कमल किशोर गोयनका ने कहा कि गांधी शाश्‍वत विषय है। इससे मुक्‍ति असंभव है। गांधीजी पर जितना साहित्‍य प्रकाशित हुआ है उतना किसी और पर नहीं। इसके बाद भी गांधीजी पर काम करने की बहुत गुंजाइश है। डॉ. गोयनका ने एक सवाल भी खड़ा किया कि आजादी के बाद गांधीजी का प्रभाव साहित्‍य में क्‍यों खत्‍म हो गया? इस पर विचार किए जाने की जरूरत है। उन्‍होंने कहा कि भक्‍तिकाल भारतीय जीवन-मूल्‍यों की श्रेष्‍ठतम उपलब्‍धि है। इस सत्र का संचालन आर्य विदुषी श्रीमती सुनीता बग्‍गा ने तथा धन्‍यवाद ज्ञापन इंद्रप्रस्‍थ साहित्‍य भारती के कोषाध्‍यक्ष श्री शांति स्‍याल ने किया।
चतुर्थ सत्र में समारोप एवं सम्‍मान कार्यक्रम संपन्‍न हुआ। इन्‍द्रप्रस्‍थ साहित्‍य भारती के अध्‍यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ ने कहा कि हमें अपनी लम्‍बी रेखा खींचनी है। समाज में जो कुप्रवृत्‍तियां आ रही हैं उनके विरुद्ध खड़े होने की जरूरत है।
मुख्‍य वक्‍ता के रूप में अखिल भारतीय साहित्‍य परिषद् के राष्‍ट्रीय महामंत्री श्री ऋषि कुमार मिश्र ने कहा कि राष्‍ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत साहित्य का सृजन वर्तमान समय की आवश्यकता है।
राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ, दिल्‍ली प्रांत प्रौढ़ प्रमुख श्री उत्तम प्रकाश ने समारोप उद्बोधन देते हुए कहा कि परंपरा से पद्धति, पद्धति से संस्‍कार, और संस्‍कार जब आचरण में उतरता है तो धर्म बन जाता है। उन्‍होंने कहा कि साहित्‍य सोये समाज को जगाने का काम करता है। गीता जीने का समय आ गया है।
समारोह सत्र की अध्‍यक्षता करते हुए वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. मालती ने कहा कि हमारा अतीत गौरवशाली है। हमें इससे प्रेरित होकर ऐसा साहित्‍य रचना है जो जन-जन में नैतिकता को पुष्‍ट करे।
समारोप सत्र को संबोधित करते हुए इन्‍द्रप्रस्‍थ साहित्‍य भारती के संगठन महामंत्री श्री प्रवीण आर्य ने कहा कि वर्तमान साहित्‍यिक परिदृश्‍य में हमें अच्‍छा रचना होगा और संघर्ष के मोर्चे पर भी साहित्‍यकारों को खड़ा होना होगा।
इस प्रदेश अधिवेशन में राष्‍ट्रीय विचारों से अनुप्राणित साहित्‍यकारों और बुद्धिजीवियों को सम्‍मानित किया गया, जिनमें लब्‍धप्रतिष्‍ठ साहित्‍यकार श्री जीत सिंह, वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. मालती, सुप्रसिद्ध साहित्‍यकार डॉ. देवेंद्र आर्य, वरिष्‍ठ फिल्‍मकार श्री सुरेश जिंदल, गीतकार डॉ. कीर्ति काले, केंद्रीय हिंदी संस्‍थान के निदेशक डॉ. नंदकिशोर पांडे एवं सांस्‍कृतिक गौरव संस्‍थान के परामर्शदाता डॉ. महेश चंद गुप्‍त के नाम उल्‍लेखनीय हैं।
इस सत्र का संचालन इन्‍द्रप्रस्‍थ साहित्‍य भारती के महामंत्री श्री मनोज शर्मा ने और धन्‍यवाद ज्ञापन श्री भुवनेश सिंघल ने किया।
इस प्रदेश अधिवेशन में बड़ी संख्‍या में साहित्‍यकारों एवं शोधार्थियों की उपस्‍थिति उल्‍लेखनीय रही।


Post a Comment

0 Comments