चन्देलों की बेटी तो वो गोंडवाना की रानी थी
रूप सुन्दरता की मूरत वीरता की जुबानी थी
वीर नारयण की माँ कहलाती वो काली रुपा
दुर्गावती नाम लेकर पैदा हुई वह क्षत्राणी थी
हरम आये दुर्गा अकबर चाहता ये चाहता था
नहीं वो शायद दुर्गा के हाथ तीर कमानी थी
एक लिंग का नारा था बुलंद हुआ इतना कि
काली का रूप धर आई जैसे दुर्गा भवानी थी
वीरता थी उसमें कूट कूट कर भरी हुई यारोँ
ऐतिहासिक युद्ध मे स्वर्ग को गई महारानी थी
प्रणाम कर महारानी दिल्ली वाले की क़लम
हमदर्द अशोक ने लिखा यूँ किस्सा कहानी थी
कभी रज़िया कभी रानी लक्ष्मीबाई बन आई
शायद बेटो से ज्यादा उनमें जोश जवानी थी
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,कल्पना सी उड़ाओ
हिमा दास सी दौड़ाओ, इतनी बात बतानी थी
अशोक सपड़ा हमदर्द
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