शीर्षक: मैं भी गाँधी


मैं भी गाँधी
हाँ, मैं भी गाँधी....
 
जीवन को जब जाचूँ परखूँ
तौलूँ अपने कर्मों को
घिसूं कसौटी पर नित खुद को
समझूँ सारे धर्मों को
सच्चाई के साथ रहूँ जब
लड़ूँ बुराई से हरदम
तब कहलाऊँ मैं भी गांधी....
 
हर तबके के प्रति जब सोचूँ
जीवन बेहतर करने को
सभी समस्याओं का हल खोजूँ
सबकी पीड़ा हरने को
बहा पसीना उनकी खातिर
जीना जब आसान करुँ
फिर बन जाऊँ मैं भी गाँधी....
 
दीन-दुखी अनपढ़ लोगों की
हालत अगर सुधारूँ मैं
उनके सँग उनकी संगत में
जीवन तनिक गुजारूं मैं
पाठ स्वच्छता या शिक्षा के
अगर पढ़ा पाऊँ थोड़ा
तब जी पाऊँ मैं भी गाँधी....
 
भेद-भाव या ऊँच-नीच की
दीवारें जब ध्वस्त करूँ
द्वेष-ईर्ष्या या कटुता की
कुटिल ताकतें पस्त करूँ
वैचारिक मतभेद भुलाने
की जब कोशिश सफल रहे
हृदय बसाऊँ मैं भी गाँधी....
 
देश प्रेम या देश भक्ति के
नारे व्यर्थ न होने दूँ
राष्ट्र प्रथम, दूजा हित अपना
अवसर कभी न खोने दूँ
ज़िम्मेदारी सभी निभाएँ
प्रेरित इतना कर पाऊँ
तब दुहराऊँ मैं भी गाँधी....
 
बढ़े राष्ट्र उन्नति पथ पर
चले प्रगति की नव आँधी
मैं अपना कर्तव्य निभा कर
बन पाऊँ सच्चा गाँधी
कर पाऊँ खुशहाल सभी को
तब कह पाऊँ मैं भी गाँधी....
हां, कह पाऊँ मैं भी गांधी....
 


 
*कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा*
*30 सितंबर 2020*


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