वंदना    


अनवार चौधरी—समीक्षा न्यूज—         
आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा मात-पिता के सम्मान की
जिसने मुझ को जन्म दिया पाल पोस कर बड़ा किया
उंगली पकड़कर चलना सिखाया नित्य संस्कार का पाठ पढ़ाया
भूलूंगी मैं कैसे उस माता को जिसने मुझे अमृत धार दिया
भूलूंगी कैसे परम पूज्य पिता को जिसने गुरु सा ज्ञान दिया
एक तरफ मेरे श्री गुरु हैं बैठे, एक तरफ मेरे परम पूज्य पिता
ज्ञान का भंडार दिए दोनों, ने जैसे श्री गुरु वैसे पिता
माता का कर्ज नहीं चुका पाओगे जिस ने पिलाई अमृत सा दूध की धारा
नैनो की माता है ज्योति, जैसे सीप में होती है मोती
चारों धाम बसते हैं ,जिस घर में माता-पिता हंसते हैं
मित्रों यदि कुछ गाना है तो मात पिता के बंदन गाना है
शाम सुबह माता पिता के चरणों में शीश झुकाना है
अपने मृदुल भाषा से नित् मात पिता का दिल बहलाना है।



लेखिका:—
श्रीमती देवंती देवी
धनबाद झारखंड।


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