मेरे अंतर मन के

 प्रभु बनाना बीबी मुझको तुम ऐसे पोलिस वाले की

ऐंठ हो पूरी जिसमें वर्दी की ऐसे इक वर्दी वाले की

जो मुझे ,हे कल्याणी हे शुभ ओ डार्लिंग कह बुलाये
जो दिल्ली चाँदनी चौक थाने वाला थानेदार कहलाये

अपनत्व ,प्रेम ,त्याग की अहसास की लड़ी बनूँगी मैं
ए मेरी प्रियतमा जैसे शब्दों से गर मुझको वो बुलाये

मैं पत्थर हूँ कि हीरा ये बताने वाले जौहरी वाले की
प्रभु बनाना......

बीबी बनकर ख्याल उसका कुछ ज्यादा ही रखूँगी
उसे हिफाज़त से ज्यादा अपनी हिरासत में रखूँगी

अपने ह्रदय की गहराई से सुनाए मुझ पे कविता
अच्छा लगे बुरा श्रोता की समस्या ,मैं ही रखूँगी

विजयश्री हार बने गले का जिस जितने वाले की
प्रभु बनाना ....

वल्लाह लम्बी मूंछ कड़क आवाज़ के फ़साने हो
वल्लाह दिल का साफ़,हम निगाहों के निशाने हो

वो रूठा रहे अपना काम उसको मनाते रहना हो
दरीबा के श्रराफ़ा बाज़ार वाला वो मेरा गहना हो

जो डाले मेरे गले में नौलखा हार उस दिलवाले की
प्रभु बनाना....

उसमें बेबाकी,अल्हड़ता शैतानी सँग ईमानदारी हो
जिसमें रिश्वत खोरी वाली नहीं कोई दुकानदारी हो

जिसकी नींदे उचटती सिर्फ मेरी यादें सोच सोचके
जिसके निर्णयों में ख़ुद मेरी भी थोड़ी भागीदारी हो

मेरे अंतर मन के अधरों की प्यास मिटाने वाले की
प्रभु बनाना......

मेरे अंतर मन के अधरों की....

अशोक सपडा हमदर्द


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