सामाजिक क्रांति के पुरोधा, महान संत बाबा गाडगे जी महाराज की पुण्यतिथि 20 दिसंबर 2020 पर विशेष




 महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, पाखंड, और रूढ़िवाद के घोर विरोधी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे l यधपि गाडगे जी अशिक्षित थे,  लेकिन गांव गांव भ्रमण कर जन-जन की दुर्दशा का अवलोकन कर उनके मन में उपेक्षित समाज को जगाने की प्रबल इच्छा जागृत हो गई थी l वे भ्रमण करते हुऐ जिस गांव में रात्रि में ठहरते, भजन मंडली के साथ कीर्तन द्वारा लोगों में ज्ञान की किरण कैसे फैले और अंधकार का विनाश हो भजन गाकर समझाते हुऐ जीवन भर प्रेरणा देते रहें l भीख मांग मांग कर आप ने धर्मशालाए, चिकित्सालय पशु चिकित्सालय  तथा शिक्षण संस्थाएं बनवाई जहां उन वर्गों को शिक्षा प्राप्त हो सके जिनमें महाराष्ट्र के सामंतवादी लोग बहुजन समाज को शिक्षित नहीं होने देते थे l  अस्पतालों में उनकी चिकित्सा ही नहीं होने देते थे I यहां तक कि कहीं धर्म स्थल पर जाते तो उन्हें धर्मशाला में भी ठहरने नहीं देते थे उनके साथ घोर अन्याय अत्याचार करते थे l बाबा गाडगे ने यह पीड़ा अनुभव किया तथा धर्मशाला, पाठशाला, चिकित्शालाओं का तथा छात्रावासों का निर्माण समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए करवाया l 

12 साल तक बाबा गाडगे अज्ञातवास में रहकर भ्रमण करते हुए I समाज और देश में व्याप्त अंधविश्वास, पाखंड, आडंबर, रूढ़िवाद, सामाजिक कुरीतियों और दूरव्यसनों से अवगत हो, उनके निराकरण के लिए  प्रयत्नशील रहे l उन्होंने सोचा कि समाज को इससे कितनी पीड़ा झेलनी पड़ रही है इसका अनुभव उन्हें हो गया था l व्यवस्था परिवर्तन के लिए सामाजिक बुराइयों का जिन्हें परंपरा वादियों, कट्टरपंथियों ने समाज में विभेद और भ्रम पैदा कर फैला रखा था, बाबा ने  घोर विरोध किया l उन्हें यह समझने में जरा भी देर नहीं हुई कि यह अशिक्षा, गरीबी, विषमता के कारण है उन्होंने गांव - गांव जाकर  स्वच्छता अभियान चलाते हुए गांव वालों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाते हुए बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रेरित किया l उनका कहना था कि चाहे आप के गहने बर्तन बिक जाय, सस्ते वस्त्र पहनने पड़े, जीविका के लिए कम खर्च में काम चलाना पड़े, लेकिन बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाई जाए, इससे आपके कष्ट भी दूर होंगे समाज और देश भी संपन्न और सुदृढ़ होगा, तथा जब अच्छी शिक्षा मिलेगी तो सामाजिक असमानता दूर होगी, लोग सद्भाव, भाईचारा, प्रेम और सहयोग से एक दूसरे से मिलकर रहेंगे नफरत, अस्पृश्यता, भेदभाव, विषमता, दूषित वातावरण का विनाश होगा l समता, समरसता से सहिष्णुता समाज में फैलेगी असहिष्णुता समाप्त होगी l उनका एकमात्र उद्देश्य था, कि जनसेवा, उपेक्षित, बेबस, लाचार, दीन दुखियों में ही ईश्वर की अनुभूति होती है l वे मूर्ति पूजा के घोर विरोधी, तथा महिलाओ के सामाजिक गैर बराबरी के भी घोर विरोधी थे l समाज में महिलाओं को शिक्षा और सम्मान मिले, लगातार कीर्तन में गांव - गांव जाकर वहां के निवासियों को समझाते थे l वे महिला सशक्तिकरण के प्रबल पक्षधर थे, पुरुष महिला को समान अधिकार होना चाहिए, उन्हें भी बराबरी का अधिकार होना चाहिए ऐसा चाहते थे l उनका मानना था कि असली भगवान की सेवा करो, भूखे को भोजन, प्यासे को पानी, वस्त्र हीन को वस्त्र, अनपढ़ को शिक्षा, बेकार को काम में अपने धन का प्रयोग करो, तीर्थ स्नान, मूर्ति पूजा के लिए यात्रा न करो, दीन की सेवा में आपको आनंद की अनुभूति होगी, दरिद्र, दीन दुखी की सेवा ही सर्वोत्तम सेवा है l

डॉ. अंबेडकर बाबा गाडगे के सामाजिक क्रांति द्वारा सामाजिक परिवर्तन के संघर्ष से बहुत ही प्रभावित थे, एक बार बाबा गाडगे बीमार पड़े तो, उनका हालचाल जानने के लिए स्वयं डॉ. अंबेडकर उनके पास गए, जब वह भारत सरकार में कानून मंत्री थे l य़ह इस बात का प्रमाण है कि डॉ. अंबेडकर जी के मन में बाबा गाडगे के प्रति कितना सम्मान था l बाबा ने समाज के उपेक्षित वर्गों में कितना परिवर्तन का कार्य किया था, वह उल्लेखनीय हैl

 20 दिसंबर 1956, को सामाजिक, शैक्षणिक क्रांति के अग्रदूत, बाबा गाडगे का परिनिर्वाण हुआ, हम बाबा गाडगे के बताए मार्ग पर एक कदम चलकर, सर्वहारा समाज की पीड़ा का अनुभव कर उसे दूर करने का प्रयत्न करे तथा विविधता में एकता, विषमता में समानता देश समाज में स्थापित करें बाबा गाडगे जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी स्मरण और वंदन, हमें बाबा के क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन पर गर्व है, गौरव महसूस करते हैं ।

                                              लेखक:- रामदुलार यादव, संस्थापक, अध्यक्ष                                

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