“चतुर्वेद संहिताओं का प्रकाशन एवं इनका अग्रिम ग्राहकों को प्रेषण आरम्भ”



-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

हितकारी प्रकाशन समिति, हिण्डोन सिटी के द्वारा चार वेदों की मूल संहिताओं का चार खण्डों में प्रकाशन होकर इसे ग्राहकों व पाठकों को प्रेषण करना आरम्भ कर दिया गया है। हमने भी वेद संहिताओं का एक पूरा सैट प्रेषित करने के लिये निवेदन किया था। कल की स्पीड पोस्ट डाक से हमें चार खण्डों में वेद संहितायें तथा इनके साथ डा. सोमदेव शास्त्री रचित वेदों पर एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ ‘‘वेदों का दिव्य सन्देश” प्राप्त हुआ है। वेदों के दिव्य सन्देश ग्रन्थ का सम्पादन आर्य विद्वान डा. विनोदचन्द्र विद्यांलकार जी ने किया है। डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी कुछ माह पूर्व कीर्तिशेष हुए हैं। 650 से अधिक पृष्ठों का यह भव्य ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को वेद संहिताओं के अग्रिम ग्राहकों को निःशुल्क दिया जा रहा है। हमने इस ग्रन्थ का सम्पादकीय एवं लेखक का प्राक्कथन पढ़ा है जो हमें अत्यन्त ज्ञानवर्धक एवं उपयेागी लगा। वेद ज्ञान में रूचि रखने वाले सभी पाठकों को इस ग्रन्थ से लाभ उठाना चाहिये। 

चतुर्वेद मन्त्र संहिताओं को चार खण्डों में भव्य रूप में प्रकाशित किया गया है। ऋग्वेद संहिता दो खण्डों में पूर्ण हुई है। प्रथम खण्ड में 600 तथा दूसरे खण्डों में 592 पृष्ठ हैं। ऋग्वेद संहिता के दो खण्ड कुल 1192 पृष्ठों में पूर्ण हुए हंै। यजुर्वेद संहिता में 272 तथा सामवेद संहिता में 256 पृष्ठ हैं। इन दोनों को एक खण्ड वा जिल्द में प्रकाशित किया गया है। अथर्ववेद मन्त्र संहिता 736 पृष्ठों में पूर्ण हुई है। यह चारों खण्ड देखने में अत्यन्त भव्य हैं। मुद्रण भी सुरुचिपूर्ण व नयनाभिराम कह सकते हैं। कागज व मुद्रण सभी उच्च कोटि का है। इससे पूर्व इससे भव्य रूप में वेद मन्त्र संहितायें प्रकाशित हुई हैं, इसका हमें ज्ञान नहीं है। परमात्मा की वाणी वेद को तो भव्यतम् रूप में ही प्रकाशित होना चाहिये और हमें लगता है कि ऐसा ही हुआ है। सभी मन्त्र संहिताओं में प्रेरक के रूप में स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी का नाम दिया गया है। 

हमें लगता है कि हितकारी प्रकाशन समिति, हिण्डोन सिटी के संचालक व अध्यक्ष बन्धुवर श्री प्रभाकरदेव आर्य जी ने यह ऐतिहासिक कार्य किया है। इससे लगभग 25 वर्ष पूर्व स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी के सम्पादन में मैसर्स विजयकुमार गोविन्दराम हासानंद, दिल्ली की ओर से इसके अध्यक्ष श्री अजय आर्य जी द्वारा वेद संहिताओं का प्रकाशन किया गया था। तब इसे एक जिल्द सहित दो जिल्दों में भी प्रस्तुत किया गया था। वह ग्रन्थ भी हमारे संग्रह में हैं। वेद प्रचार में हमारे इन प्रकाशकों का योगदान प्रशंसनीय एवं सराहनीय है। हम ईश्वर से इन प्रकाशकों के लिए हृदय से शुभकामनायें करते हैं। हम आशा करते हैं कि भविष्य में भी हमें इन प्रकाशकों से अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं लाभप्रद वैदिक साहित्य सुन्दर एवं भव्य रूप में प्रकाशित होकर मिलता रहेगा।   

यह भी बता दें कि हितकारी प्रकाशन समिति द्वारा प्रकाशित चार वेदों की संहिताओं को मात्र श्रद्धानन्द बलिदान दिवस 23 दिसम्बर, 2020 तक एक हजार सड़सठ रूपये में दिया जा रहा है जिसमें डाक शुल्क भी सम्मिलित है। इसके साथ डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई का ‘‘वेदों का दिव्य सन्देश” ग्रन्थ निःशुल्क दिया जा रहा है। पाठकों को इस सुविधा का लाभ उठाना चाहिये। वेदों के अनुयायी आर्यसमाज के सदस्यों के घरों पर चारों वेद की मन्त्र संहितायें तथा वेद भाष्य सहित ऋषि दयानन्द का सत्यार्थप्रकाश एवं अन्य सभी महत्वपूर्ण ग्रन्थ अनिवार्य रूप से होने चाहियें। वेद मन्त्र संहितायें ही वह ज्ञान है जो परमात्मा ने अपने अन्तर्यामीस्वरूप से आदिकालीन चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा को दिया था। इनका हमारे घरों में होना सौभाग्य की बात है। महाभारत के बाद वेदों का अध्ययन शिथिल हो गया था। इसी कारण देश देशान्तर में अज्ञान तथा अन्धविश्वास उत्पन्न हुए थे जिससे सारी मानव जाति को अपार दुःख व अपमान झेलना पड़ा और इसी कारण से संसार में अविद्यायुक्त मत-मतान्तर उत्पन्न जिनसे संसार में दुःख व अशान्ति उत्पन्न हुई। हमारी परतन्त्रता का कारण भी वेदों का विलुप्त होना तथा देश व समाज में अविद्या का प्रसार होना था। अतः ज्ञान, उन्नति, सुख तथा जीवन मुक्ति के प्रतीक वेद एवं वैदिक साहित्य का हमारे घरों में होना अत्यन्त आवश्यक है। हम एक बार पुनः श्री प्रभाकरदेव आर्य जी को इस महद् कार्य को सम्पन्न करने के लिये बधाई देते हैं।

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