“गाय का दुग्ध एवं इससे बने पदार्थ स्वस्थ जीवन का आधार हैं”



परमात्मा ने इस सृष्टि को जीवात्माओं के सुख आदि भोग व अपवर्ग के लिए बनाया है। सृष्टि को बनाकर परमात्मा जीवों को उनके कर्मों का भोग कराने के लिये जन्म देता व उनका माता-पिता व भूमि माता के द्वारा पालन कराता है। परमात्मा ने मनुष्य जीवन को उत्तम, श्रेष्ठ व महान बनाने के लिये ज्ञान सहित अन्न, दुग्ध व ओषधि आदि पदार्थ प्रचुर मात्रा में संसार में बनाये व उपलब्ध करा रखे हैं। परमात्मा ने सृष्टि को उत्पन्न कर आदि काल में सभी प्राणियों की अमैथुनी सृष्टि की थी। संसार, वनस्पति जगत तथा इतर प्राणी जगत के अस्तित्व में आने के बाद परमात्मा ने मनुष्यादि की अमैथुनी सृष्टि की थी। परमात्मा ने मनुष्यों को धर्म व अधर्म अथवा कर्तव्य व अकर्तव्य का बोध कराने के लिए उन्हें सभी सत्य विद्याओं का ज्ञान चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद चार ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा के द्वारा उपलब्ध कराये थे। हम आज जो भी भाषा बोलते हैं वह सब भाषायें वेदों की भाषा संस्कृत से ही समय के साथ अपभ्रंसों, उच्चारण के विकारों तथा भौगोलिक आदि कारणों से बनी हैं। परमात्मा की अपनी भाषा संस्कृत है जिसमें उसने चार वेदों का ज्ञान दिया है। वेदों की संस्कृत भाषा से श्रेष्ठ अन्य कोई भाषा नहीं है यदि होती तो परमात्मा उसी भाषा में ज्ञान देता। आज भी विद्वान इस बात को सिद्ध करते हैं कि संस्कृत भाषा ही आज भी विश्व की श्रेष्ठतम भाषा है। 

ईश्वरीय ज्ञान वेदों का अध्ययन कर व वेद ज्ञान को ग्रहण कर मनुष्य अपने मनुष्य जीवन को सार्थक कर सकता है। इस जीवन को महान तथा दूसरों के लिए लाभकारी व हितकर बना सकता है। इन वेदों के अध्ययन से ही हमारे देश में महान मनुष्य जिन्हें ऋषि कहा जाता है, उनकी परम्परा व श्रृंखला चली जो सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न होकर महाभारत के कुछ काल बाद ऋषि जैमिनी पर समाप्त हुई। हमारे सभी ऋषि महान थे। ब्रह्मा, मनु, यज्ञावलक्य, पतंजलि, गौतम, कपिल, कणाद, जैमिनी, बाल्मीकि, वेद व्यास, महर्षि जैमिनी तथा महर्षि दयानन्द सभी महान पुरुष थे। वैदिक संस्कृति को ही पूर्णतया अपनाकर राम, कृष्ण, लक्ष्मण, भरत, युधिष्ठिर, विदुर, चाणक्य आदि भी महान पुरुष बने। इन महापुरुषों के समान महापुरुष संसार में कहीं उत्पन्न नहीं हुए हैं। हमारा सौभाग्य है कि आज भी सम्पूर्ण वैदिक ज्ञान हमें सुलभ है। हम इसका अध्ययन कर तथा इसे आचरण में लाकर महानता को प्राप्त हो सकते हैं। सभी मनुष्यों के लिए महान बनने के द्वार वेदों ने खोले हुए हैं। ऋषि दयानन्द सरस्वती जी का सत्यार्थप्रकाश एवं इतर सभी ग्रन्थ मनुष्य को महान बनाने सहित उसे देश व समाज का एक आदर्श पुरुष व नागरिक बनाने में सहायक होते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि परमात्मा के उत्पन्न किए गये सभी मनुष्यों को देश, काल, जाति, सम्प्रदाय आदि से ऊपर उठकर वेदों को ही जीवन में अपनाना चाहिये। इसी में समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है। 

परमात्मा ने मनुष्यों की प्रमुख आवश्यकता ज्ञान को ही सृष्टि के आरम्भ में प्रदान नहीं किया अपितु वह मनुष्यों के शरीर निर्माण व बल प्राप्ति के साधन अन्न, ओषधि, फल व दुग्ध आदि को भी सृष्टि के आरम्भ से उत्पन्न कर रहा है। इन सभी पदार्थों का अपना अपना महत्व है। दुग्ध का भी अपना महत्व है। मनुष्य जीवन के निर्माण में माता के दुग्ध के बाद जो सर्वोत्तम दुग्ध होता जिसे शिशु जन्म काल से आरम्भ कर मृत्यु पर्यन्त सेवन करता है वह गोदुग्ध होता है। गोदुग्ध पूर्ण आहार होता है। इसका सेवन कर मनुष्य ज्ञान व बल से युक्त दीर्घ आयु को प्राप्त होकर निरोग व स्वस्थ रहते हुए अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर सकता है और जीवन के उद्देश्य भोग व अपवर्ग को प्राप्त कर सकता है। गोदुग्ध सभी पशुओं के दुग्ध में गुणों की दृष्टि से सर्वोत्तम होता है। इसी कारण हमारे शास्त्रों में गो की स्तुति में अनेक मार्मिक एवं प्रेरक वचन पढ़ने को मिलते हैं। गो विश्व की माता है। गोदुग्ध अमृत है। गो विश्व की नाभि है। गो का आदर व पालन करें। ऐसे अनेक वचन वेदों व वेदानुकूल ग्रन्थों में ऋषियों ने हमें बताये हैं। गोपालन से मनुष्य सत्कर्मों का संचय करता है जिससे उसे जन्म जन्मान्तर में सुख व भोग प्राप्त होते हैं। गो पूर्ण शाकाहारी पशु है। उसने हमारे पूर्वजों सहित हमारा व हमारी सन्तानों का माता के समान पालन किया है। आज भी छोटे बच्चे गोदुग्ध पीकर ही अपने शरीर की उन्नति व बल की वृद्धि करते हैं। गोदुग्ध का सेवन विद्या प्राप्ति में भी सहायक होता है। गोदुग्ध का पान करने से मनुष्य की बुद्धि कठिन व जटिल विषयों को भी सरलता से समझने की सामथ्र्य को प्राप्त होती है। अतः संसार के सभी मनुष्यों को गोरक्षा करने हेतु गोपालन करना चाहिये और अपने आहार व भोजन में गोदुग्ध व इससे बने नाना प्रकार के पदार्थ दधि, मक्खन, घृत, छाछ आदि का सेवन करना चाहिये। गो के सभी पदार्थ उत्तम गुणों से युक्त हैं। गो का गोबर भी ईधन के काम आता है तथा कृषि कार्यों में भी यह उत्तम खाद होता है जिससे हमें विषमुक्त अन्न प्राप्त होता है। गोमूत्र भी एक ओषधि होता है जिससे हमें अनेक रोगों यहां तक की कैंसर के उपचार में भी लाभ होता है। अतः गो माता को किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहिये। गो के प्रति माता का भाव होना चाहिये। हमें उससे प्रेम करना चाहिये और उसे समय समय पर यथाशक्ति चारा आदि खिलाते रहना चाहिये। ऐसा करने पर ही हम राम व कृष्ण सहित ऋषियों के वंशज तथा गो भक्त कहला सकेंगे। 

ऋषि दयानन्द ने गोमाता की करुण पुकार को सुनकर गोरक्षा हेतु गोकरुणानिधि नाम से एक लघु ग्रन्थ लिखा है। इस ग्रन्थ में गो संबंधी अनेक महत्वपूर्ण पक्षों पर प्रकाश डाला है। हम इस ग्रन्थ से उनके कुछ वचन प्रस्तुत कर रहे हैं। ग्रन्थ की भूमिका में उन्होंने लिखा है कि वे धर्मात्मा विद्वान लोग धन्य हैं, जो ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव, अभिप्राय, सृष्टि-क्रम, प्रत्यक्षादि प्रमाण और आप्तों के आचार से अविरुद्ध चल के सब संसार को सुख पहुंचाते हैं और शोक है उन पर जो कि इनसे विरुद्ध स्वार्थी, दयाहीन होकर जगत् की हानि करने के लिए वर्तमान हैं। पूजनीय जन वो हैं जो अपनी हानि हो तो भी सबका हित करने में अपना तन, मन, धन सब कुछ लगाते हैं और तिरस्करणीय वे हैं जो अपने ही लाभ में सन्तुष्ट रहकर अन्य के सुखों का नाश करते हैं। वह आगे लिखते हैं कि सृष्टि में ऐसा कोन मनुष्य होगा जो सुख और दुःख को स्वयं न मानता हो? क्या ऐसा कोई भी मनुष्य है कि जिसके गले को काटे वा रक्षा करें, वह दुःख और सुख को अनुभव न करे? जब सबको लाभ और सुख ही में प्रसन्नता है, तब बिना अपराध किसी प्राणी को प्राण वियोग करके अपना पोषण करना सत्पुरुषों के सामने निन्द्य कर्म क्यों न होवे? सर्वशक्मिान् जगदीश्वर इस सृष्टि में मनुष्यों के आत्माओं में अपनी दया और न्याय को प्रकाशित करे कि जिससे ये सब दया और न्याययुक्त होकर सर्वदा सर्वोपकारक काम करें और स्वार्थपन से पक्षपातयुक्त होकर कृपापात्र गाय आदि पशुओं का विनाश न करें कि जिससे दुग्ध आदि पदार्थों और खेती आदि क्रिया की सिद्धि से युक्त होकर सब मनुष्य आनन्द में रहें। इसी पुस्तक में ऋषि दयानन्द ने गणित की रीति से गणना कर बताया है कि एक गाय की एक पीढ़ी के दुग्ध से 1,54,440 मनुष्य एक बार में तृप्त हो सकते हैं। इसी प्रकार एक गाय की एक पीढ़ी में जो बछड़े होते हैं उनसे जो अन्न उत्पन्न किया जाता है उससे भी गणना करने पर 2.56,000 लोगों का एक बार का भोजन हो सकता है। इस प्रकार एक गाय की एक पीढ़ी से ही एक समय में 4,10,440 मनुष्य क्षुधा निवृत्ति व भोजन को प्राप्त हो सकते हैं। इस कारण से जो मनुष्य गाय की हत्या कर उनका मांस खाते हैं वह उस गाय से होने वाले लाभों को अन्य मनुष्यों को वंचित करने से अज्ञानी व पाप करने वाले मनुष्य सिद्ध होते हैं। 

ऋषि दयानन्द ने गोरक्षा, गोपालन व गोहत्या रोकने के लिए गाय के प्रति कुछ मार्मिक वचन भी कहें हैं। उन्होंने लिखा है कि देखिए, जो पशु निःसार घास-तृण, पत्ते, फल-फूल आदि खावें और दूध आदि अमृतरूपी रत्न देवें, हल गाड़ी आदि में चलके अनेकविध अन्न आदि उत्पन्न कर, सबके बुद्धि, बल, पराक्रम को बढ़ाके नीरोगता करें, पुत्र-पुत्री ओर मित्र आदि के समान मनुष्यों के साथ विश्वास और प्रेम करें, जहां बांधे वहां बंधे रहें, जिधर चलावें उधर चलें, जहां से हटावें वहां से हट जावें, देखने और बुलाने पर समीप चले आवें, जब कभी व्याघ्रादि पशु वा मारनेवाले को देखें, अपनी रक्षा के लिए पालन करनेवाले के समीप दौड़ कर आवें कि यह हमारी रक्षा करेगा। जिसके मरे पर चमड़ा भी कण्टक आदि से रक्षा करे, जंगल में चरके अपने बच्चे और स्वामी के लिए दूध देने के नियत स्थान पर नियत समय पर चलें आवें, अपने स्वामी की रक्षा के लिए तन-मन लगावें, जिनका सर्वस्व राजा और प्रजा आदि मनुष्य के सुख के लिए है, इत्यादि शुभगुणयुक्त, सुखकारक पशुओं के गले छुरों से काटकर जो मनुष्य अपना पेट भर, सब संसार की हानि करते हैं, क्या संसार में उनसे भी अधिक कोई विश्वासघाती, अनुपकारक, दुःख देनेेवाले और पापी मनुष्य होंगे? इन शब्दों को पढ़कर भी यदि कोई मनुष्य गो व इतर पशुओं का मांस खाना नहीं छोड़ता तो उसे निबुद्धि मनुष्य ही कहा जा सकता है। 

परमात्मा ने गाय को मनुष्य को दुग्ध पान कराने सहित कृषि कार्यों में सहायक करने के लिए बनाया है, मांसाहार के लिए नहीं। अतः सभी सरकारों, मनुष्यों व धर्म-मत व सम्प्रदायों को गोरक्षा पर ध्यान देना चाहिये तथा गोहत्या न केवल भारत अपितु पूरे विश्व में सर्वथा बन्द होनी चाहिये। 

-मनमोहन कुमार आर्य

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