स्वतंत्रता की मांग के बजाय समझ विकसित करें महिलाएं: वन्दना विश्वकर्मा




विनय—समीक्षा न्यूज  


नयी दिल्ली। समय से महिलाओं की सुरक्षा और स्वतंत्रता की मांग होती रही है  और महिलाएं भी इसके लिए आवाज़ बुलंद करती रही है ।लेकिन सवाल यह है कि महिलाएं किससे स्वतन्त्रता और सुरक्षा चाहती है ? समाज से, पुरुष से , या बच्चों से।

और स्वतंत्रता से उसका आशय क्या है? 

स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में बहुत फर्क है। स्वतंत्रता में व्यक्ति और समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना जुड़ी होती है जबकि स्वच्छंदता में खुद का आनंद ही देखा जाता है।

स्वच्छंदता का फेवर करने वाले लोगों का कहना होता है कि हमें स्वतंत्रता चाहिए और स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी मनमानी करना और उसका दुष्परिणाम आने पर हाय तौबा करना , और फिर यह कहना कि हम क्या करे ,अगर सामाजिक व्यवस्था ही ऐसी है तो? ये कहाँ तक उचित है?

ये तो महिलाओं की जिम्मेदारी है कि वो समाज को इस प्रकार का बनाएं जिसमें वे खुद को स्वतंत्र और सुरक्षित महसूस कर सकें , क्योकि परिवार से ही संस्कार की शुरुआत होती है और वह ही परिवार की धुरी होती है। खुद को और बच्चों को निर्भय वातावरण देना उसकी जिम्मेदारी है।

फिर भी हम खराब व्यवस्था का रोना रोयेंगे तो हमें यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि पुरुषों के लिए भी तो खराब व्यवस्था बन गयी है उन्हें भी तो व्यवस्था से बाहर आने के लिए समय लगेगा । महिलाओं की समझ स्वतंत्रता से विकसित होगी तो पुरुषों की समझ भी तो विकसित करनी पड़ेगी ।इसलिए सत्ता,  पुरुष प्रधान हो या महिला प्रधान, समझ विकसित करने की जरूरत दोनों में ही है। जिसमें महिला की जिम्मेदारी ज्यादा है क्योंकि उसमें भावनात्मक समझ एक पुरुष की अपेक्षा ज्यादा होती है जब समाज मे समझ पैदा हो जाएगी तो स्वतंत्रता की मांग फिजूल हो जाएगी। 

 पुरुष वर्ग खुद को देखे, उन्हें किसने रोका है क्या वे स्वतंत्र नहीं है?

क्या वे पुरुष नहीं हैं?

क्या समाज, पुरुष प्रधान समाज नहीं है?

सबकुछ तो उनके फेवर में है फिर वे क्यों डरते है अपनी आत्मा की आवाज सुनने से । मतलब सामाजिक व्यवस्था स्त्री और पुरुष दोनों के विरूद्ध है ।

महिला स्वतंत्रता की मांग के बजाय सिर्फ महिलाओं को प्राइमरी स्कूल की शिक्षा अपने हाथ में ले लेने की मांग करनी चाहिए ।इससे महिलाएं जब छोटे छोटे बच्चों के साथ समय गुज़ारेंगी तो उनके नैसर्गिक गुण (प्रेम, वात्सल्य, करुणा, ममता और दया) में भी निखार आएगा और साथ ही उनकी समझ भी विकसित होगी।

बच्चों को भी संस्कार और सुरक्षा मिलेगी जिससे समाज उन्नति करेगा ।

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