200 वें वेबिनार में 164 वें बलिदान दिवस पर मंगल पांडेय को दी श्रद्धांजलि

 


धनसिंह—समीक्षा न्यूज   

निष्काम कर्म व उपासना से ईश्वर दर्शन सम्भव-दर्शनाचार्य विमलेश बंसल

स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी मंगल पांडेय ने जलाई थी-राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य


गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में "मृत्यु से अमृत की ओर" व प्रथम स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडेय के 164 वें बलिदान दिवस पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन जूम पर किया गया। यह कोरोना काल में परिषद का 200 वां वेबिनार था।

वैदिक विदुषी दर्शनाचार्या विमलेश बंसल ने मृत्यु से अमृत की ओर कैसे बढ़ा जाए,पर प्रकाश डालते हुए महामृत्युंजय मंत्र जो कि ईश्वर की वाणी है जिसका वर्णन तीन वेदों में आया है जिसके जप का अर्थ मनन व धारण से मृत्यु को लांघा जा सकता है, उसकी सरल ज्ञानवर्धक प्रेरक व्याख्या करते हुए कहा कि त्र्यम्बक परमात्मा ही अमृत का दाता है उससे जुड़कर ही उसकी शरणागति प्राप्त हो सकती है। उसकी वेद आज्ञा में चलकर निष्काम कर्म करते हुए शुद्ध उपासना से ही उसका दर्शन सम्भव है।इसके लिए सांसारिक विषय वासनाओं का पके हुए सुगंधित पुष्ट महकदार खरबूजे की भांति शुभ व निष्काम अर्थात् परोपकारमय कर्मों की खुशबू से परिपक्व होकर स्वयं वासना रूपी डाल को छोड़ना ही जीवन मुक्ति की श्रेयस्कर अवस्था है।उन्होने सांख्य दर्शन के सूत्र- श्येनवत सुख दुःखी त्याग वियोगाभ्याम् द्वारा बताया कि सांसारिक वस्तुओं को स्वतः छोड़ने में सुख है और छीने जाने में दुःख।इसलिये यदि हम लम्बा सुख अर्थात् सर्वानंद चाहते हैं तो मृत्यु से अमृत की ओर जाने प्रार्थना पुरुषार्थ परमार्थ करना ही होगा व ईश्वर की शुद्ध उपासना भी।

केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के जनक प्रथम क्रांतिकारी मंगल पांडेय को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने 29 मार्च 1857 को कलकत्ता की बैरकपुर छावनी में क्रांति का बिगुल बजाया था।उनका नारा बुलंद किया था "मारो फिरंगी को"। अंग्रेज अधिकारियों पर गोली चलाने व हमला करने के कारण उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी होनी थी पर कलकत्ता की बैरकपुर जेल के जल्लादों ने फांसी देने से इनकार कर दिया तब बाहर से जल्लादों को बुलाकर 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई। इस तरह से मंगल पांडेय 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले बलिदानी वीर होने का इतिहास रच गये।


अलीगढ़ गुरुकुल साधु आश्रम के प्रधानाचार्य जीवनसिंह शास्त्री ने कहा कि मृत्यु से अमृत की ओर बढ़ने के लिए ईश्वर के प्रति समर्पण आवश्यक है।


कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ रामचंद्र ने कहा कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास क्रांतिकारियों ने अपने रक्त से लिखा है उनके बलिदान को स्मरण रखने की आवश्यकता है।

केन्द्रीय आर्य युवक परिषद उत्तर प्रदेश के प्रदेश महामंत्री प्रवीण आर्य ने नई पीढ़ी से देश के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों से प्रेरणा लेने का आह्वान किया।


आचार्य महेंद्र भाई,डॉ रचना चावला,सौरभ गुप्ता,दीप्ति सपरा, आशा आर्या,रवीन्द्र गुप्ता,आनन्द प्रकाश आर्य,मृदुल अग्रवाल, प्रवीना ठक्कर,नरेंद्र आर्य सुमन, प्रतिभा कटारिया आदि ने भी अपने विचार रखे।





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