विश्व शांति हेतु हिंदू नव वर्ष पर अपने मकान कार्यालय पर लगाना होगा हनुमान ध्वज: बीके शर्मा हनुमान



समीक्षा न्यूज संवाददाता

गाजियाबाद। विश्व ब्राह्मण संघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता  बी के शर्मा हनुमान ने बताया कि विश्व में अमन चैन व उन्नति के लिए एवं कोरोना मुक्त बनाने हेतु अपने मकान के ऊपर हनुमान जी का ध्वजा  फहराना व यज्ञ हवन करना होगा नया साल, हिंदू नववर्ष भारतीय कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाता है. इसे नवसंवत्सर कहते हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है। हिन्दुओं का नया साल चैत्र नव रात्रि के प्रथम दिन यानी गुड़ी पड़वा पर हर साल हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रथम मास का प्रथम चन्द्र दिवस नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह प्रायः 21 मार्च से 21 अप्रैल के बीच पड़ता है। ग्रंथो में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी 1 रविवार था। हमारे लिए आने वाला संवत्सर 2075 बहुत ही भाग्यशाली होगा, क्योंकि इस वर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रविवार है, शुदी एवम शुक्ल पक्ष एक ही है।चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को आरंभ होता है। इस दिन ग्रह और नक्षत्र मे परिवर्तन होता है। हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है।पेड़-पोधों मे फूल, मंजर, कली इसी समय आना शुरू होते है, वातावरण मे एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है। जीवो में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है। इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र की शुरुअात इसी दिन से होती है। जिसमे हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरूआत करते है।परम पुरूष अपनी प्रकृति से मिलने जब आता है तो सदा चैत्र में ही आता है। इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया।न शीत न ग्रीष्म। पूरा पावन काल। ऎसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए, श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि के ठीक नवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। आर्यसमाज की स्थापना इसी दिन हुई थी। यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है। संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल  विक्रम संवत्सर विक्रम संवत का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है।कहीं धूल-धक्कड़ नहीं, कुत्सित कीच नहीं, बाहर-भीतर जमीन-आसमान सर्वत्र स्नानोपरांत मन जैसी शुद्धता। पता नहीं किस महामना ऋषि ने चैत्र के इस दिव्य भाव को समझा होगा और किसान को सबसे ज्यादा सुहाती इस चैत मेे ही काल गणना की शुरूआत मानी होगी।चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास। मधु मास अर्थात आनंद बांटती वसंत का मास। यह वसंत आ तो जाता है फाल्गुन में ही, पर पूरी तरह से व्यक्त होता है चैत्र में। सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है, पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, गणगौर पूजती कन्याओं और सुहागिन नारियों के हाथ की हरी-हरी दूब में तथा वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में।चारों ओर पकी फसल का दर्शन, आत्मबल और उत्साह को जन्म देता है। खेतों में हलचल, फसलों की कटाई, हसिए का मंगलमय खर-खर करता स्वर और खेतों में डाँट-डपट-मजाक करती आवाजें। जरा दृष्टि फैलाइए, भारत के आभा मंडल के चारों ओर। चैत्र क्या आया मानो खेतों में हंसी-खुशी की रौनक छा गई।

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