समीक्षा न्यूज नेटवर्क
शिक्षा देने वाला गुरु ही , केवल एक सहारा है।
शिक्षक के चरणों में बसता, यह भूमंडल सारा है।
घर में तो सब कुछ-कुछ सीखें, गुरु विद्या भंडार भरे।
शिक्षक की संगत पा बालक, शिक्षित हो नव कार्य करे।
शिक्षक के सम्मुख नतमस्तक, होता जग यह सारा है।1
अनगढ़ माटी के लोंदे को, गुरु ही ढाले सांचे में।
ज्ञान ध्यान छेनी से छांटे, शिष्य बिठाये खांचे में
दोष न रह जाए शिष्यों में, गुरु ने सदा विचारा है।2
केवल ज्ञान नहीं वो देते, ऊंच नीच भी सिखलाते।
कैसे निर्भय होकर जीना, भेद शिष्य को बतलाते।
बाधाओं से डरे बिना नित, बहती निर्मल धारा है।3
सीख मिली जो शिक्षक गण से, जीवन का उद्धार करे।
अनुभव के बल पर ही मानव, विपदा से दो चार करे।
गुरु के बिना भँवर में हमको, मिलता नहीं किनारा है।4
जन्म मरण में फँसे जीव का, गुरु ही तारन हारा है।
शिक्षक के चरणों में बसता, यह भूमंडल सारा है।
कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, ट्विटर @tripathi_ps, नोएडा
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