ख़ूब इधर की उधर हो रही है,
सुबह, शाम, दोपहर हो रही है।
जो खुद से ही बेख़बर रहा है,
उसकी सबको ख़बर हो रही है।
ये जो चेहरा है उतरा-उतरा,
किसी की तो नज़र हो रही है।
वे ही मंहगाई को रोना हैं रोते,
जिनकी अच्छी गुज़र हो रही है।
चुनावी मौसम में वोटर खुश हैं,
इन दिनों तो क़दर हो रही है।
'सुदामा' मुख़ालिफ़ परेशां बहुत हैं,
उनकी साजिश बेअसर हो रही है।
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सुदामा पाल
(पत्रकार/कवि/लेखक)
ग़ाज़ियाबाद
संपर्क दूरभाष- 09457331400
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