नेताजी शुरू से ही छुआछूत के बेहद खिलाफ थे: जेपी कश्यप



दीपेन्द्र सिंह—समीक्षा न्यूज  

समाजवादी पार्टी को जन्म देने वाले दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव का आज 82वां जन्मदिवस है. मुलायम सिंह यादव राजनीतिक जीवन में 62वर्ष भी पूरे कर रहे हैं. 1960 में राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले मुलायम सिंह यादव देश के उन ​चुनिंदा नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने 6 दशक से बदलते भारत को न सिर्फ जिया है, बल्कि उसमें योगदान भी किया है. वह अपने राजनीतिक जीवन में किंग मेकर से लेकर ​किंग तक की भूमिका में रहे. चाहे वह केंद्र की सत्ता हो या उत्तर प्रदेश की, हर जगह मुलायम ने अपना लोहा मनवाया. आज मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के संरक्षक हैं.

मुलायम सिंह का राजनीतिक कैरियर देश के दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने देश की राजनीति में अपना पहला कदम वर्ष 1954 में रखा था.तब उनकी उम्र 15 वर्ष थी.15 साल की ही छोटी सी उम्र में मुलायम सिंह यादव के गरीब दलितों की भलाई के लिए कॉग्रेस सरकार के प्रति उग्र तेवर लोगों को दिखाई देने लगे थे डॉ. राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर हुए नहर रेट आंदोलन में मुलायम सिंह यादव ने बेहद क्रांतिकारी अंदाज में हिस्सा लिया और इस आंदोलन का प्रतिनधित्व करते हुए पहली बार जेल भी गए. मुलायम सिंह यादव को बचपन से पहलवानी करने का बेहद शौक था वे दंगल के उस समय के मंझे हुए पहलवानों में अपनी गिनती रखते थे.वर्ष 1957 में लोहिया की प्रजातंत्र सोशलिस्ट पार्टी से चौ. नत्थू सिंह यादव जसवन्तनगर विधान सभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे.उसी दौरान इलाके के काशीपुर गाँव मे दंगल प्रतियोगिता आयोजित थी. इस दंगल प्रतियोगिता में बतौर चीफ गेस्ट चौ. नत्थू सिंह यादव भी पहुंचे थे.इस दंगल प्रतियोगिता में मुलायम ने कई कुश्तियां लड़ीं और अपने प्रतिद्वंदी पहलवानों को धूल चटा दी. मुलायम सिंह यादव के पहलवानी के दांव पेंच व धोबी पाट को देख कर चौ. नत्थू सिंह बहुत प्रसन्न हुए.दंगल के बाद चौ. नत्थू सिंह ने मुलायम से पूंछा कि किस दल के लिये काम करते हो? प्रतिउत्तर में मुलायम ने उन्हें बताया कि वे तो उन्ही के दल के लिये काम करते आ रहे हैं. इसी दंगल समारोह के बाद से मुलायम सिंह यादव, चौ. नत्थू सिंह के बेहद करीब आ गए थे.मुलायम सिंह यादव ने उन्हें अपना राजनैतिक गुरु बना लिया.बस यहीं से गुरु व शिष्य के बीच कई मुलाकातों का दौर शुरू हुआ. बस यही मुलाकातें मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक करियर में नया मोड़ ले आईं.मुलायम सिंह करहल के जैन इंटर कॉलेज में शिक्षक भी थे.वर्ष 1967 में चौ. नत्थू सिंह ने अपने प्रिय शिष्य मुलायम सिंह यादव के लिये जसवंतनगर सीट छोड़ दी और अपनी जगह प्रजातंत्र सोशलिस्ट पार्टी से मुलायम सिंह यादव को जसवंतनगर विधान सभा सीट से पहली बार प्रत्याशी बना दिया. अचानक जसवन्तनगर विधानसभा सीट से मुलायम सिंह यादव के प्रत्याशी बनाने के निर्णय को लेकर डॉ. राम मनोहर लोहिया, चौ. नत्थू सिंह यादव से बेहद नाराज हुए थे.उन्होंने जब लोहिया जी को यह आश्वस्त किया कि मुलायम सिंह यादव यह चुनाव जीत लेंगे, हम सभी उन्हें चुनाव जितवाएँगे, तब लोहिया जी का गुस्सा शांत हुआ.मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक गुरु चौ. नत्थू सिंह यादव के पुत्र व मुलायम के बाल सखा पूर्व मंत्री सुभाष यादव बताते हैं कि नेता जी मुलायम सिंह यादव सफेद धोती कुर्ता व सिर पर लाल टोपी पहन कर उनके साथ मोटरसाइकिल पर बैठकर गांव-गांव चुनाव प्रचार के लिये जाते थे.जबकि चौ. नत्थू सिंह अपनी जीप में बैठकर गांव गांव अपने शिष्य मुलायम के चुनाव के लिये चंदा एकत्रित करते थे.इस चुनाव में जसवन्तनगर सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी लाखन सिंह थे.मुलायम सिह यादव, उनके राजनैतिक गुरू चौ0नत्थू सिंह यादव,मुलायम के बाल सखा दर्शन सिंह यादव,बाबू राम यादव रामफल बाल्मीकि समेत कई लोगो की कड़ी मेहनत के चलते मुलायम सिंह यादव यह चुनाव जीत गए.तब यूपी की विधान सभा में मुलायम सिंह यादव सबसे कम उम्र के विधायक चुनकर गए थे.इस समय उनकी उम्र लगभग 30 वर्ष के आसपास रही थी. मुलायम सिंह यादव शुरू से ही छुआछूत व जातिगत व्यवस्था के बेहद खिलाफ थे. मुलायम मुलायम सिंह यादव के बाल सखा व सैफई गाँव के प्रधान रामफल बाल्मीकि की,वर्ष 1967 के चुनाव में उम्र यही कोई 22 वर्ष थी.इन्होंने भी इस चुनाव में अपने सखा मुलायम को जिताने के लिए काफी मेहनत की थी.मुलायम सिंह यादव के बाल सखा  सैफई गाँव के प्रधान रामफल बाल्मीकि रामफल बाल्मीकि बताते हैं कि 1967 के समय में छुआछूत जातीय व्यवस्था की जड़ें समाज मे बहुत ही गहरी थीं. उस समय मुलायम सिंह यादव पहले ऐसे नेता हुए, जिन्होंने इस व्यवस्था का काफी मुखर होकर विरोध किया. रामफल बाल्मीकि बताते हैं कि मुलायम जब भी गाँव आते थे,तो हमारे समाज के लोगों से गले मिलते थे और हम लोगों को अखाड़े में पहलवानी भी सिखाते थे. उन्होंने बताया कि मुलायम सिंह यादव ने हमेशा समाज में फैली छुआछूत व जातीयता की जड़ों को कमजोर करने का ही काम किया है.यह किस्सा उन दिनों का है जब नेता जी सूबे की सरकार में सहकारिता मंत्री हुआ करते थे.इसी समय नेता जी ने अपने छोटे भाई राजपाल सिंह यादव का एक शादी समारोह अपने गांव सैफ़ई में आयोजित किया इस समारोह में मुलायम सिंह यादव इलाके के सभी बाल्मीकि व अन्य दलित समाज को निमंत्रित किया था.रामफल बाल्मीकि बताते हैं कि उनके समाज के एक बुजुर्ग प्रभुदयाल, जब अपने समाज के लोगों के साथ भोजन करने खाने के पंडाल में पहुंचे तो नेताजी ने उन्हें गले लगाते हुए भोजन ग्रहण करने के लिये आग्रह किया. प्रभुदयाल इस आग्रह पर नेता जी से बोले कि हम लोग अलग बैठ कर भोजन ग्रहण कर लेंगे, लेकिन मुलायम सिंह यादव नहीं माने और पंडाल में सबके साथ बैठा कर भोजन ग्रहण करवाया.वर्ष 1967 में इटावा जिले की जसवन्तनगर सीट से विधायक चुनने के बाद से फिर मुलायम राजनीति के अखाड़े में अपने राजनैतिक विरोधियों को पटकनी देते हुए आगे बढ़ते रहे थे इसके बाद सूबे के मध्यावधि चुनाव 1968,1974 व 1977 में भी वे जसवन्तनगर विधान सभा से निर्वाचित हुए .इसी समय आम जनता के बीच उनकी जमीनी पकड़ की मजबूती को देखते हुए उन्हें धरतीपुत्र की उपाधि मिली अब लोग उन्हें धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव के नाम से भी बुलाने  लगे.नेताजी तो उनको उनके स्कूल के जमाने से ही उनके साथी कहते थे.इंदिरा गांधी और मुलायम सिंह यादव का लोहा मानती थी .यह राजनीतिक घटना है वर्ष 1980 की है.जसवन्तनगर सीट से लगातार हो रही कॉंग्रेस की हार से देश की तत्कालीन पीएम व अखिल भारतीय कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष इंदिरा गांधी बेहद परेशान थीं.तब उन्होंने कांग्रेस के तत्कालीन कद्दावर नेता व इटावा में भरथना के रहने वाले बलराम सिंह यादव को 80 के विधान सभा चुनाव में कॉग्रेस प्रत्याशी के रूप में जसवन्तनगर विधान सभा सीट से टिकट दिया और उस समय बलराम सिंह को इस सीट से विजयश्री दिलवाने की जिम्मेदारी इंदिरा जी ने अपने पुत्र संजय गांधी को दी थी.तब संजय गांधी, बलराम सिंह यादव को जसवन्तनगर सीट से चुनाव जितवाने के लिये चार दिन इटावा रुके थे,और बलराम सिंह के चुनाव का संचालन उन्होंने अपने हाथ मे लिया था, तब यह चुनाव मुलायम सिंह यादव लूज कर गए थे.सन 80 में इटावा की जसवन्तनगर विधान सभा सीट का यह चुनाव देश के राजनैतिक गलियारों में बेहद चर्चा का विषय बना था.र्लोकदल के संस्थापक व देश के पूर्व पीएम चौ. चरण सिंह, मुलायम सिंह यादव की कार्यकर्ताओ पर पकड़ व मजबूत याद्दाश्त व चुनावी दांव पेंच में महारथ हासिल होने के कारण उन्हें अपना दत्तक पुत्र भी मानते थे. बस इसी वजह से चौ. चरण सिंह के पुत्र चौ. अजित सिंह का मुलायम सिंह से 36 का आंकड़ा रहता था.आपातकाल में मुलायम सिंह यादव ने 19 माह की जेल भी काटी थी. 1980 में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश लोकदल के अध्यक्ष बनाये गए थे.जो बाद में जनता दल का एक घटक दल भी बना था.1990 में जब वी पी सिंह की सरकार गिर गयी थी तब मुलायम सिंह यादव, चन्द्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए.अप्रैल 1991 में कांग्रेस के समर्थन से मुलायम सिंह यादव फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वर्ष 1991 में ही कुछ दिनों के पश्चात कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस लेकर उनकी सरकार गिरा दी थी.वर्ष 1991 के यूपी के मध्यावधि चुनाव में मुलायम सिंह सूबे में चुनाव हार गए थे.4 अक्टूबर 1992 में मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में अपनी अलग समाजवादी पार्टी का गठन किया था.वर्ष 1993 में 256 सीटों पर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने चुनाव लड़ा,जिसमे 103 सीटों पर मुलायम सिंह यादव की सपा चुनाव जीती थी.1993 में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार यूपी में काबिज हुई.जिसमें बसपा की 67 सीटें थीं. एक बार फिर मुलायम सिंह यादव सूबे के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन बाद में यह गठबंधन नहीं चल सका और फिर सरकार गिर गई.1996 में मुलायम सिंह यादव ने केंद्र की राजनीति में प्रवेश किया. केंद्र में बनी सयुंक्त मोर्चे की सरकार में मुलायम सिंह यादव पीएम बनने की दौड़ में शामिल थे. तत्कालीन राजनीतिक बिरादरी के लोग कहते हैं कि  लालू प्रसाद यादव के दांव पेंच के चलते मुलायम सिंह यादव पीएम पद की रेस से बाहर हो गए.1जून 1996 को मुलायम सिंह यादव देश के रक्षा मंत्री बने और उनका रक्षा मंत्री के रूप में उनका यह कार्यकाल 19 मार्च 1998 तक चला. वर्ष 1999 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव सूबे के सम्भल व कन्नौज सीट से सांसद निर्वाचित हुए.बाद में उन्होंने कन्नौज सीट छोड़ दी, फिर अपने बेटे को सांसद बनवाया.वर्ष 2003 में मुलायम सिंह यादव ने पुनः उत्तर प्रदेश की राजनीति की तरफ रुख किया और फिर उत्तर प्रदेश के सीएम बन गए. एक मुख्यमंत्रित्व के रूप में उनका यह कार्यकाल 2007 तक चला. मुलायम सिंह यादव वर्ष 2004 व 2009 में मैनपुरी से सांसद भी रहे। 2012 के चुनाव में मुलायम सिंह के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी को सूबे पूर्ण बहुमत मिला तब उन्होंने अपने बड़े बेटे अखिलेश यादव को सूबे का सीएम बनाया.समाजवादी पार्टी के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष वर्तमान में संरक्षक मुलायम सिंह यादव जी का राजनीतिक कार्यकाल कुछ इस प्रकार रहा 

1960: मुलायम सिंह राजनीति में उतरे

1967: पहली बार विधानसभा चुनाव जीते, MLA बने

1974: प्रतिनिहित विधायक समिति के सदस्य बने

1975: इमरजेंसी में जेल जाने वाले विपक्षी नेताओं में शामिल

1977: उत्तर प्रदेश में पहली बार मंत्री बने, कॉ-ऑपरेटिव और पशुपालन विभाग संभाला

1980: उत्तर प्रदेश में लोकदल का अध्यक्ष पद संभाला

1985-87: उत्तर प्रदेश में जनता दल का अध्यक्ष पद संभाला

1989: पहली बार UP का मुख्यमंत्री बनकर कमान संभाली

1992: समाजवादी पार्टी की स्थापना कर, विपक्ष के नेता बने

1993-95: दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री पद पर काबिज़ रहे

1996: मैनपुरी से 11वीं लोकसभा के लिए सांसद चुने गए. केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री का पद संभाला

1998-99: 12वीं और 13वीं लोकसभा के लिए फिर सांसद चुने गए

1999-2000: पेट्रोलियम और नेचुरल गैस कमेटी के चेयरमैन का पद संभाला

2003-07: तीसरी बार यूपी का मुख्यमंत्री पद संभाला

2004: चौथी बार 14वीं लोकसभा में सांसद चुनकर गए

2007: यूपी में बसपा से करारी हार का सामना करना पड़ा

2009: 15वीं लोकसभा के लिए पांचवीं चुने

2009: स्टैंडिंग कमेटी ऑन एनर्जी के चेयरमैन बने

2014: उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ से सांसद बने

2014: स्टैंडिंग कमेटी ऑन लेबर के सदस्य बने

2015: जनरल पर्पस कमेटी के सदस्य बने

2017: समाजवादी पार्टी के संरक्षक बने 

आज उनके 82 में जन्मदिन पर बहुत-बहुत बधाई हो प्रभु से प्रार्थना कर उनका आशीर्वाद हम पर इसी तरह बना रहे।


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