बदन सुलगा गई चिंगरिया


समीक्षा न्यूज 


सुनो अब के लेना छुट्टियां बरसात में

राह देखूँ खोल खिड़कियां बरसात में


ये सोच सोचकर राह निहारु मैं तेरी

लिखेगा शायद तू चिठ्ठियां बरसात में


चल दिल की बात कहते है हम तुमसे

घूमेंगे हम तो थाम छतरियां बरसात में


सुनो हमें छोड़कर न जाना फ़िर तुम

थाम लेना तू मेरी उंगलियां बरसात में


बदन को सुलगा रही अंधेरी रातों में

तेरे मेरे दरम्यां लकड़ियां बरसात में


कह कर के तेरे सँग ही जलेगी आज

बदन सुलगा गई चिंगरिया बरसात में





अशोक सपड़ा हमदर्द

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