‘इस जीवन में आत्मा और परमात्मा को जान लेने पर ही मनुष्य का जीवन सफल होता हैः पं. सूरतराम शर्मा’



समीक्षा न्यूज नेटवर्क

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून देश में साधना एवं उपासना का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। वर्षों से यहां लोग साधना एवं उपासना कर अपने जीवन को उसके उद्देश्य की पूर्ति में लगाते और आत्मा की उन्नति कर रहे हैं। प्रत्येक वर्ष मार्च के महीने में यहां पर एक वेद का पारायण एवं गायत्री महायज्ञ का आयोजन सम्पन्न किया जाता है। इस वर्ष यह आयोजन 10 मार्च से 19 मार्च, 2023 तक सम्पन्न हुआ जिसमें बड़ी संख्या में साधकों एवं याज्ञिकों ने भाग लिया। 19 मार्च 2023 को सामवेद पारायण एवं गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति सम्पन्न हुई। इस अवसर पर यज्ञ के ब्रह्मा डा. वेदपाल जी, स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी, पं. सूरतराम शर्मा जी एवं स्वामी योगेश्वरानन्द जी के सम्बोधन भी हुए। कार्यक्रम का उत्तमता से संचालन वैदिक विद्वान ऋषिभक्त श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने किया। हम डा. वेदपाल जी एवं स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी के सम्बोधन वा सामूहिक प्रार्थना को दिनांक 19-3-2023 के लेख द्वारा प्रस्तुत कर चुके हैं। आज हम पं. सूरतराम शर्मा एवं स्वामी योगेश्वरानन्द जी के सम्बोधन में कही गई बातों को प्रस्तुत कर रहे हैं। 

पं. सूरतराम शर्मा जी ने अपने सम्बोधन के आरम्भ में यज्ञ में अग्न्याधान में प्रयुक्त मंत्र ‘ओ३म् उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूत्र्ते संसृजेथामयं च’ का उच्चारण किया और कहा कि यज्ञ की भौतिक अग्नि तो जड़ है। वह हमारी बातों को सुन व समझ नहीं सकती। यज्ञ में उक्त मन्त्र से याज्ञिक आत्मा की अग्नि को सम्बोधित करते हैं। अग्नि को प्रज्जवलित करते हुए हमें यह नहीं समझना चाहिये कि हम यज्ञ की भौतिक अग्नि को सम्बोधित कर रहे हैं। आचार्य जी ने कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर बताया कि हम रिक्शा वाले को ऐ रिक्शा तथा मुण्डन संस्कार में नाईं को ऐ छुरे शब्दों के द्वारा सम्बोधित करते हैं। इसी प्रकार से यज्ञ में अग्नि शब्द से यज्ञपति परमात्मा को सम्बोधित किया जाता है। आचार्य जी ने कहा कि यज्ञ में हम अग्नि शब्द से अपनी आत्मा को भी सम्बोधित करते हैं। यदि हमने आत्मा और परमात्मा को जान लिया तो ठीक है अन्यथा हमारा जीवन सफल नहीं होता। हमें यह मनुष्य जीवन आत्मा और परमात्मा को जानने के लिए मिला है। आचार्य सूरतराम शर्मा जी ने कहा कि यदि हम अपने इस जीवन में आत्मा और परमात्मा को नहीं जानेंगे तो हम अपने इस जीवन का विनाश करेंगे।

पं. सूरत राम शर्मा जी ने कहा कि यदि मनुष्य जीवन में आत्मा को नहीं जाना तो ज्ञान व विज्ञान को प्राप्त करना व्यर्थ है। यदि हमने अपने मन को नहीं साधा वा नियंत्रित नहीं किया तो हमारा योग सिद्ध नहीं होगा। यदि हमारा अपनी चित्त की वृत्तियों पर नियंत्रण नहीं होगा तो हमारी साधना और योग सिद्ध नहीं कहलायेंगे। उन्होंने कहा कि विज्ञान वरदान भी है और कहीं-कहीं अभिशाप भी है। आचार्य जी ने कहा कि विज्ञान की कुछ बातें राष्ट्र  के पतन का कारण बनती हैं। आर्यसमाज के विद्वान पण्डित आचार्य सूरतराम शर्मा जी ने कहा कि परमात्मा को जानना हमारे जीवन का ध्येय है। इस शरीर को सजाना, संवारना, इसे खिलाना व पिलाना तथा इन्हीं कामों में पूरा जीवन लगा देना जीवन के ध्येय से दूर जाना है। विद्वान वक्ता शर्मा जी ने सलाह दी की हम यज्ञ एवं साधना करते हुए आत्म-चिन्तन किया करें। जीवन में सबसे बड़ा यज्ञ अपनी आत्मा का चिन्तन कर उसे ठीक-ठीक जानना है। अपनी आत्मा के सत्य स्वरूप को जानना हमारा प्रमुख कर्तव्य है। यदि हम ऐसा करेंगे तभी हमारा मनुष्य जीवन सफल कहा जा सकता है। 

वैदिक विद्वान सूरतराम शर्मा जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द को बाल्यावस्था में शिवरात्रि के दिन यह बोध हुआ था कि जड़ वा निर्जीव पदार्थ कभी चेतन वा ज्ञान से युक्त सत्ता वा सत्तायें नहीं हो सकती। मनुष्य जीवन में एक परमात्मदेव ही उपासना व भक्ति करने के योग्य हैं। मनुष्य आत्मा का कर्तव्य बोध वा ज्ञान को प्राप्त कर आत्मा और परमात्मा को जानना तथा परमात्मा को प्राप्त करना अर्थात् आत्मा व ईश्वर का साक्षात्कार करना है। इसी के साथ पं. सूरतराम शर्मा जी का सम्बोधन समाप्त हुआ। 

अपने सम्बोधन में स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि संसार का उपकार करना आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात् मनुष्य की शारीरिक, आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति करना। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज के सभी दस नियम हमारे जीवन की आचरण की संिहता है। यदि हम नियमों का पालन करते हैं तो हम कभी दुःखों से पीड़ित नहीं होंगे। स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी ने आगे कहा कि हमारा शरीर एकदम स्वस्थ होना चाहिये। इसके लिए हमें अपने भोजन पर ध्यान देना चाहिये। खांसी व शरीर दर्द में हमें चावल एवं दही का सेवन नहीं करना चाहिये। हम परिश्रम नहीं करते हैं, इस कारण हमारा खाया हुआ भोजन पचता नहीं है। स्वामी जी ने कहा कि जब हम परिवर्तन लाना चाहेंगे तभी परिवर्तन आयेगा। उन्होंने कहा कि हमें यह जीवन परमात्मा से जीने व सत्कर्म करने के लिए मिला है। उन्होंने बताया कि मिर्च खाने से बवासीर होती है। अधिक चाय पीने से रक्तचाप बढ़ता है। नमक व चीनी का सेवन न करने से हमारे शरीर की हड्डियां लचीली रहती हैं। स्वामी जी ने अपने सम्बोधन में लुधियाना के एक 125 वर्षीय संन्यासी का उल्लेख किया और बताया कि वह उन्हें नागपुर में मिले थे। वह स्वामी जी इतनी अधिक आयु में भी पूर्ण स्वस्थ थे। इसका कारण स्वामी जी का भोजन एवं स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन करना था। स्वामी योगेश्वरानन्द जी ने श्रोताओं को कहा कि हमें प्रतिदिन सात बार धरती पर अवश्य बैठना चाहिये। हमें भोजन धरती पर बैठ कर ही करना चाहिये। यदि हम अधिक समय तक धरती पर रहा करेंगे तो धरती हमें कभी नहीं छोड़ेगी। स्वामी जी ने अपनी गलत आदतों को सुधारने की बातें भी श्रोताओं को कही। स्वामी जी ने कहा कि हमें संसार को बदलना है परन्तु सबसे पहले हमें अपने आप को बदलना पड़ेगा और वैसा बनाना पड़ेगा जैसा हम संसार को बनाना चाहते हैं। स्वामी जी गोरक्षा की बातें भी की और देश में गोहत्या किये जाने पर गहरा दुःख एवं पीड़ा व्यक्त की। अपने सम्बोधन को विराम देते हुए स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वैदिक साधन आश्रम तपोवन को इस प्रकार के वृहद यज्ञों के आयोजन नगर के वृहद पार्कों वा उद्यानों आदि स्थानों पर करने चाहिये जिससे अधिक से अधिक लोग इसमें भाग लेकर इसे समझ सकें और इसको करने कराने का हमारा प्रयोजन भी सफल हो। 

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में आयोजित सामवेद पारायण एवं गायत्री यज्ञ का आयोजन सफल रहा। इस आयोजन में देश के अनेक भागों से लोग पधारे थे। सभी इस यज्ञ एवं साधना में भाग लेकर प्रसन्न थे। अगले वर्ष फिर इस आयोजन में आने का विचार व स्वप्न लेकर सभी याज्ञिक व साधक विदा हो गये। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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