गुरूजी के नाम से विख्यात हैं पंडित हरिदत्त शर्मा, जिनके शिष्य देश ही नहीं विदेशों में भी हैं-ज्योति शर्मा





धनसिंह—समीक्षा न्यूज

(सुशील कुमार शर्मा, स्वतंत्र पत्रकार)

गाजियाबाद। जन्म के दाता मात पिता हैं, आप कर्म के दाता हैं। आप मिलाते हैं ईश्वर से, आप ही भाग्य विधाता हैं। हे गुरू ब्रह्मा, हे गुरू विष्णु, हे शंकर भगवान आपके चरणों में। हे गुरूदेव प्रणाम आपके चरणों में। हमारे शास्त्रों में गुरू को ईश्वर का ही प्रतिरूप माना गया है। अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करके जीवन मार्ग को ज्ञानरुपी प्रकाश से जो प्रशस्त करे, असफलताओं के कारण निराश हो जाने पर उत्साह वर्धन करके पुनः संघर्ष हेतु जो प्रेरित करे, वही गुरू है। गोस्वामीतुलसीदास जी के शब्दों में - गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई। जो बिरंच संकर सम होई।।

अर्थात् स्वयं देवता भी गुरू कृपा के अभाव में भवसागर पार नहीं कर सकते। आज की इस व्यस्ततम जीवन शैली के चलते, हम सब अपने अपने स्वार्थ सिद्ध करने में प्रयासरत हैं, कि कैसे औरों से आगे निकल सकें। किसी की सहायता करना तो दूर, किसी का सुख दुख जानने का भी हमारे पास समय नहीं है। किंतु मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानती हूं, जो न केवल अपनों की बल्कि किसी की भी सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया, की प्रवृत्ति को तन मन धन से आचरण करने वाले ऐसे व्यक्ति हैं श्रद्धेय पंडित हरिदत्त शर्मा  जिन्हें पूरा गाज़ियाबाद गुरूजी के नाम से जानता है। स्वभाव से सर्वदा सरल, निष्काम, विनम्र और प्रेममय गुरूजी पिछले पांच दशकों से संगीत व समाज की सेवा में निरंतर कार्यरत हैं। उनके हजारों शिष्य न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में अपने गुरूजी के नाम की पताका फहरा रहे हैं। संगीत शिक्षिका ज्योति शर्मा ने बताया कि वर्ष 1978 में आपने वी. एन. भातखंडे संगीत महाविद्यालय गाजियाबाद की स्थापना करके असंख्य बालक बालिकाओं को संगीत सीखने का अवसर तो दिया ही, साथ ही शिक्षा के उपरांत उन्हें रोजगार भी उपलब्ध करवाया। आज भी महानगर के प्रत्येक स्कूल कॉलेजों में आपके ही शिष्य संगीत शिक्षक व शिक्षिका के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं। कहते हैं कि गुरू अपने शिष्यों को उनके लक्ष्य की ओर बढ़ने का मार्ग दिखाते हैं, परंतु मैं कहूंगी कि हमारे गुरूजी केवल मार्ग नहीं दिखाते बल्कि अपने शिष्यों का हाथ पकड़कर उन्हें उनके लक्ष्य तक पहुंचा कर ही चैन से बैठते हैं। यही कारण है कि पूरे शहर के लोग उनका नाम बड़ी श्रद्धा और आदर से लेते हैं। गुरूजी को अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हैं, किंतु जो काम गुरूजी कर रहे हैं, मैं कहूंगी कि उन कामों के लिए भारत रत्न भी बहुत कम होगा। मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानती हूं कि मुझे ऐसे महान गुरू का शिष्यत्व व परम सानिध्य मिला। गुरूजी के गुणों का बखान करना मुझ जैसी अल्पज्ञानी के लिए संभव नहीं है। आज गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर मैं उनके सभी शिष्यों की ओर से कोटि -कोटि प्रणाम करते हुए ईश्वर से कामना करती हूं कि आदरणीय गुरूजी सदा स्वस्थ, प्रसन्न तथा दीर्घायु हों और हम शिष्यों को उनका प्रेम व शुभाशीष सदा मिलता रहे। अंत में ये पंक्तियां पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में समर्पित करती हूं-

जब -जब जन्म लिया शंका ने, तब -तब ही समाधान मिला है।

सुर लय ताल के साथ में मुझको, जीवन का हर ज्ञान मिला है।

कोई कहे कि गुरुवर मिले हैं, तो कोई कहे विद्वान मिला है।मैं तो कहूंगी कि एक भोली भाली सी सूरत में भगवान मिला है।

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