श्रीकृष्ण मानवता के रक्षक थे -आचार्य श्रुति सेतिया



गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में " योगीराज श्रीकृष्ण जी" विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।यह कोरोना काल से 571 वाँ वेबिनार था।

वैदिक प्रवक्ता आचार्या श्रुति सेतिया ने कहा कि भारत देश की विशेषता,महत्व,आकर्षण एवम सौभाग्य रहा कि इसे ऋषि,मुनि, तपस्वी,प्रेरक महापुरुषों की विरासत व परम्परा मिली है।  दिव्यात्मा,पुण्य आत्मा महापुरुषों की लम्बी परम्परा में भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, योगिराज श्रीकृष्ण का नाम बड़ी श्रद्धा,सम्मान और पूज्यभाव से लिया जाता है।उनका व्यक्तित्व एवम कृतृत्व प्रेरक,आकर्षक, लोकोपारक,बहुआयामी तथा चुंबकीय था।श्रीकृष्ण पुण्यात्मा, धर्मात्मा,तपस्वी,त्यागी,योगी, वेदज्ञ, कूटनीतिज्ञ,लोकोपकारक,  खण्ड खण्ड भारत की अखण्ड देखने के स्वप्नदृष्टा आदि अनेक गुणों वा विशेषताओं से विभूषित थे।वे मानवता के रक्षक,पालक और उद्धारक थे।उनके जीवन का उद्देश्य था परित्राराय साधुनाम , सत्पुरुषों वा धर्मात्माओं की रक्षा हो तथा विनाशाय दृष्कृताम, पापी,अपराधी तथा दृष्ट प्रकृति के लोगों का दलन हो और धर्म संस्थापनार्थ,सत्य,धर्म,न्याय की सर्वत्र स्थापना होनी चाहिए।

संसार के इतिहास में श्रीकृष्ण जैसा निराला,विलक्षण,अदभुत, आदित्य,विशवबंधुत्व महापुरुष ना मिलेगा।यदि किसी महापुरुष में वेद,दर्शन,योग,आध्यात्म, इतिहास,साहित्य,कला, राजनीति,कूटनीति आदि सभी एकत्र देखने हैं तो वह अकेले देवपुरुष श्रीकृष्ण हैं।सत्य  ये है कि दुनियां के नादान लोगों ने उस योगिराज कृष्ण का भेद नहीं जाना।सत्य,न्याय,धर्म और मानवता की रक्षा के लिए नाना रूप धारण करने पड़े।जीवन में कभी निराश,हताश,उदास व दुखी नजर नहीं आए।यही उनके जीवन की समरसता एवम महापुरुषत्व है। उनके जीवन से ऐसी शिक्षा एवम् प्रेरणा लेनी चाहिए।श्रीकृष्ण का असली स्वरूप महाभारत में ही मिलता है।संपूर्ण महाभारत में तठस्थ रहते हुए भी सत्य,न्याय, धर्म के लिए अहम भूमिका निभाते हैं।संसार उनके कर्म कौशल के आगे नतमस्तक है।संसार का दुर्भाग्य है की श्रीकृष्ण के सत्यस्वरूप, जीवन दर्शन के साथ अन्याय वा धोखा हो रहा है। आज योगिराज श्रीकृष्ण का अश्लील,भोगी,विलासी,लंपट, पनघट पर गौपीकाओ को छेड़ने वाला आदि दिखाया,सुनाया, पढ़ाया तथा बताया गया है।सच्चे अर्थों में  ये उनका प्रमाणिक जीवन चरित्र नहीं था।आज की पीढ़ी उन्हीं बातों को सच व ऐतिहासिक मान रही है।आर्य समाज महापुरुषों के उज्वल, प्रेरक चारित्रिक गरिमा की रक्षा का सदा पक्षधर रहा है।प्रतिवर्ष श्रीकृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में बड़ी धूमधाम से कृष्ण लीला,रासलीला,झाकियां और तरह तरह के कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है और करोड़ों का बजट चकाचौंध में चला जाता है।  ऐसे  महत्वपूर्ण अवसर पर काल्पनिक,चमत्कारी और अतिश्योक्ति पूर्ण बातें छोड़ कर श्रीकृष्ण जैसे महापुरुषों द्वारा दिए गए उपदेशों,विचारों व ग्रंथो पर चिंतन,मनन व आचरण की शिक्षा लेनी चाहिए तभी महापुरुषों को स्मरण करने तथा जन्मोत्सव मनाने की सार्थकता, उपयोगिता और व्यावहारिकता है।

मुख्य अतिथि आर्य नेता राजेश मेंहदीरत्ता व अध्यक्ष अरुण आर्य ने भी अपने विचार रखे। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन करते हुए कहा कि आज श्री कृष्ण के सच्चे स्वरूप से परिचय करवाने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

गायिका प्रवीणा ठक्कर, रविन्द्र गुप्ता,पिंकी आर्या, कमला हंस, प्रतिभा खुराना, सुनीता अरोड़ा, जनक अरोड़ा, कुसुम भण्डारी, आदर्श सहगल, कौशल्या अरोड़ा, ऊषा सूद, सरला बजाज आदि उपस्थित थे।


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