गौतमबुद्धनगर: परंपरागत खेती अपनाकर बढ़ेगा उत्पादन, घटेगा प्रदूषण: जिलाधिकारी

 डीएम के निर्देश पर कृषि विभाग की एडवाइजरी जारी

ग्रीष्मकालीन जुताई से किसानों को होगा बहुआयामी लाभ

खेतों की गहराई से जुताई कर कीटों पर लगेगा अंकुश

गौतमबुद्धनगर। जिलाधिकारी गौतम बुद्ध नगर मनीष कुमार वर्मा के निर्देशानुसार कृषकों को लाभकारी परंपरागत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसी क्रम में जिला कृषि रक्षा अधिकारी विनोद कुमार ने ग्रीष्मकालीन जुताई की उपयोगिता और लाभों के बारे में एक महत्वपूर्ण एडवाइजरी जारी की है।

जिला कृषि रक्षा अधिकारी गौतम बुद्ध नगर ने बताया कि परंपरागत कृषि विधियाँ जैसे कतार में बुवाई, फसल चक्र, सहफसली खेती और विशेष रूप से ग्रीष्मकालीन जुताई कम लागत में गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त करने में अत्यंत सहायक हैं। इसके अतिरिक्त, इन विधियों को अपनाने से जल, वायु, मृदा तथा पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आती है। कीट एवं रोग नियंत्रण की आधुनिक तकनीक 'एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) में भी परंपरागत तरीकों को अपनाने पर बल दिया गया है।

रबी फसलों की कटाई के बाद खेतों की ग्रीष्मकालीन जुताई खरीफ फसलों की तैयारी हेतु अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है। यह जुताई मई-जून माह के दौरान मानसून आने से पूर्व की जाती है, जो कृषकों के लिए विभिन्न प्रकार से लाभकारी है। इसके मुख्य उद्देश्य और लाभ इस प्रकार हैं:

1.ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है, जिससे उसकी जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है, जो फसलों के लिए अत्यंत उपयोगी होती है।

2.खेत की कठोर परत को तोड़कर मिट्टी को जड़ों के विकास के लिए अनुकूल बनाया जाता है, जिससे पौधों की वृद्धि बेहतर होती है।

3.खेत में उगे खरपतवार एवं फसल अवशेष मिट्टी में दबकर सड़ जाते हैं, जिससे मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़ जाती है और उसकी उर्वरता में वृद्धि होती है।

4.मिट्टी में छिपे कीट जैसे दीमक, सफेद गिडार, कटुआ बीटल और मैगेट के अंडे, लार्वा व प्यूपा नष्ट हो जाते हैं, जिससे अगली फसल में कीटों का प्रकोप कम होता है।

5.मिट्टी में पाए जाने वाले हानिकारक जीवाणु (जैसे — इरवेनिया, राइजोमोनास, स्ट्रेप्टोमाइसीज), फफूंद (जैसे — फाइटोफ्थोरा, राइजोकटोनिया, स्कलेरोटीनिया, पाइथियम, वर्टीसीलियम) तथा निमेटोड (रूट नॉट) आदि गर्मी की गहरी जुताई से समाप्त हो जाते हैं, जो फसलों में बीमारी के मुख्य कारण होते हैं।

6.लाभकारी सूक्ष्मजीवों का विकास: ग्रीष्मकालीन जुताई से मिट्टी में वायु संचार बढ़ता है, जिससे लाभकारी सूक्ष्म जीवों की वृद्धि और विकास में सहायता मिलती है।

7.विषैले रसायनों का अपघटन: मिट्टी में मौजूद खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी रसायनों के अवशेष तथा पौधों की जड़ों से छोड़े गए हानिकारक रसायन वायु संचार से सरलता से अपघटित हो जाते हैं, जिससे मिट्टी अधिक सुरक्षित और उर्वर बनती है।

उन्होंने जनपद के कृषकों से अपील कि वे आगामी खरीफ फसल की तैयारी हेतु ग्रीष्मकालीन जुताई को प्राथमिकता दें और पारंपरिक कृषि पद्धतियों को अपनाकर बेहतर उत्पादन प्राप्त करें तथा कीट और रोगों से अपनी फसलों की रक्षा करें।



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